प्रोफेसर श्रीकांत कोंडापल्ली
शंघाई सहयोग संगठन की मौजूदा बैठक भारत के लिए काफी अहम साबित होने जा रही है। बेशक, चर्चा का यही मुख्य विषय है कि क्या चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक साथ बैठेंगे?...
शंघाई सहयोग संगठन की मौजूदा बैठक भारत के लिए काफी अहम साबित होने जा रही है। बेशक, चर्चा का यही मुख्य विषय है कि क्या चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक साथ बैठेंगे? मगर कई अन्य मसले भी हैं, जिन पर चर्चा हमारे लिए मायने रखती है। प्रधानमंत्री मोदी ने ऐसे कई विषयों को अपने संबोधन में समेटा। उन्होंने विनिर्माण कार्य तेज करने, कोविड-संक्रमण काल से उबरने, आपूर्ति शृंखला को निर्बाध गति देने और विकास दर को आगे बढ़ाने पर उचित ही जोर दिया। उन्होंने खाद्यान्न की कीमतों की भी चर्चा की, क्योंकि रूस-यूक्रेन युद्ध से गेहूं का वैश्विक निर्यात प्रभावित हुआ है। वैश्विक महंगाई भी एक अहम मुद्दा था, जिसकी चर्चा प्रधानमंत्री मोदी ने की। ऊर्जा संरक्षण पर भी उन्होंने जोर दिया, क्योंकि कोविड-काल में अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम घटकर शून्य के करीब हो गए थे, जो अब बढ़कर फिर 100 डॉलर प्रति बैरल पहुंच गए हैं।
भारत और चीन के शासनाध्यक्षों की मुलाकात को लेकर शायद ही आधिकारिक तौर पर कुछ कहा जाए, लेकिन दोनों नेता आखिरी वक्त में मिल भी सकते हैं। सीमा पर तनातनी खत्म करने की जो पहल पिछले दिनों हुई थी, उसका यही मतलब निकलता है। कूटनीतिज्ञ जानते हैं कि बिना किसी खास प्रयोजन के ऐसा नहीं किया जाता। विश्व की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था यानी चीन और पांचवीं आर्थिक ताकत यानी भारत जरूर बात करेंगे, बेशक इससे संबंधों को कोई खास गति न मिले।
अच्छी बात यह है कि अगले साल शंघाई सहयोग संगठन का नेतृत्व भारत करेगा। इस पर सभी सदस्य देश राजी हैं। यह प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा की एक बड़ी उपलब्धि होगी, क्योंकि अगली बैठक की सफलता बतौर मेजबान हमारा कद ऊंचा करेगी, और हमारी क्षमता बढ़ाएगी। यही कारण है कि अपने संबोधन में प्रधानमंत्री मोदी ने किसी विवादित मुद्दे की बात नहीं की, बल्कि कोविड से कारण सुस्त पड़ी आर्थिक गति को तेज करने का खाका खींचा। इस संगठन का हमें कई तरह से फायदा हो सकता है। पहला, आतंकवाद के खिलाफ यह हमारे काम आ सकता है। ‘रीजनल एंटी-टेररिस्ट स्ट्रक्चर’ (आरएटीएस) इस संगठन का स्थायी अंग है। यह आतंकवाद के खिलाफ अभ्यास-कार्य करता रहता है, जिससे हमारे सैनिकों को सुरक्षा की नई रणनीति बनाने का अनुभव मिलता है। फिर, जब हम ‘काउंटर-टेररिज्म’ की बात कहते हैं, तो वह ‘क्रॉस-बॉर्डर टेररिज्म’ होता है, यानी सीमा पार से संचालित आतंकी गतिविधि। इसमें स्वाभाविक तौर पर पाकिस्तान घिरता है। यह संगठन हमें मौका देता है कि हम न सिर्फ चीन और रूस, बल्कि ईरान को भी पाकिस्तान का असली चेहरा दिखा सकते हैं। आतंकवाद का विरोध करने के कारण संगठन के सदस्य देश पाकिस्तान-परस्त आतंकवाद पर बहुत दिनों तक आंखें मूंदे नहीं रह सकते।
ऊर्जा सहयोग के लिहाज से भी यह संगठन काफी फायदेमंद है। 2008 की आर्थिक मंदी के समय जब कच्चे तेल की कीमत बढ़कर 140 डॉलर प्रति बैरल हो गई थी, तब हमारा बजट पूरी तरह से गड़बड़ा गया था। मध्य एशिया हमारी ऊर्जा जरूरतें काफी हद तक पूरी कर सकता है। रूस भी साल के कुछ महीने में सऊदी अरब से अधिक तेल उत्पादन करता है। इसका मतलब है कि यदि रूस और मध्य एशिया से हमारे रिश्ते सही रहे, तो हमें सस्ती दरों पर तेल मिल सकता है। पिछले दिनों रूस ने हमें करीब 35 फीसदी छूट के साथ तेल दिया था।
व्यापारिक रिश्ते को गति देने में भी यह कारगर है। ‘इंटरनेशनल नॉर्थ-साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर’ भारत को यूरोप से जोड़ेगा। हम इसके माध्यम से पाकिस्तान को किनारे करके चाबहार (अफगानिस्तान) के रास्ते रूस तक जा सकते हैं। जरांज-डेलाराम रोड भी हमारे लिए फायदेमंद है। अफगानिस्तान से निकटता लिथियम बैटरी जैसी हमारी जरूरतों को दूर कर सकती है। अच्छी बात है कि ऊर्जा, व्यापार और आर्थिकी से जुड़े कुछ द्विपक्षीय समझौते भी हुए हैं। चीन को छोड़कर शंघाई सहयोग संगठन के तमाम देशों से अभी हम 30-40 अरब डॉलर का कारोबार करते हैं। नए समझौते आपसी कारोबार बढ़ा सकते हैं, जो हमारे लिए लाभ का सौदा होगा।
मूल रूप से प्रकाशित: हिंदुस्तान, 16.09.2022 https://www.livehindustan.com/blog/nazariya/story-hindustan-nazariya-column-17-september-2022-7092437.amp.html
प्रोफेसर श्रीकांत कोंडापल्ली
डीन, स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज, जेएनयू