प्रोफेसर स्वर्ण सिंह
राष्ट्रमंडल व गुटनिरपेक्षता आंदोलन जैसे ऐतिहासिक संगठनों से हटकर विश्व की उभरती हुई ताकतों व अर्थव्यवस्थाओं के नए समीकरणों से जुड़ने के संदर्भ में सम्मेलन में भारत की शिरकत को आंक सकते हैं।
इ स सप्ताह अफ्रीका के रवांडा देश की राजधानी किगाली में राष्ट्रमंडल के 54 देशों से 5,000 से ज्यादा प्रतिनिधि अलग-अलग सरकारी और गैर सरकारी संगठनों के अधिवेशनों में शामिल हो रहे हैं। इनमें खिलाड़ी, पत्रकार, महिलाएं, प्रकाशक, शिक्षाविद और खासकर इस बार स्वास्थ्य से जुड़े विशेषज्ञ और संगठन अपने-अपने देशों का यहां नेतृत्व कर रहे हैं। सप्ताह भर की इन द्विवार्षिक व्यस्त और रंग-बिरंगी बैठकों का समापन शुक्रवार से शुरू हो रहे दो दिवसीय राष्ट्रमंडल शिखर या ‘चोगम’ (कॉमनवेल्थ हैड्स ऑफ गवर्नमेंट मीटिंग) सम्मेलन से होगा।
सर्वव्यापी महामारी के चलते 2020 में होने वाले ‘चोगम’ के कई बार तय और फिर स्थगित होने से इसकी प्रासंगिकता और प्रभाव पर उभरते हुए प्रश्नचिह्न और गहरे हो गए हैं। चोगम के इस शिखर सम्मेलन से ही इसके सचिवालय और दूसरे संस्थानों को बजट और नीति-निर्देश मिलते हैं। पिछला चोगम 2018 में लंदन में हुआ था और चार साल के अंतराल ने इसकी कार्यशैली और कामकाज पर काफी नकारात्मक असर डाला है। चोगम 2022 के सामने सबसे जटिल प्रश्न इसकी महासचिव पैट्रीशिया स्कॉटलैंड को दूसरा कार्यकाल अनुमोदित करने का है। वह 2016 में चार वर्ष के कार्यकाल के लिए महासचिव चुनी गई थीं। क्योंकि महामारी के चलते चोगम न तो किसी नए महासचिव का चुनाव कर पाया और न ही मौजूदा महासचिव के दूसरे कार्यकाल पर निर्णय ले सका तो इस असमंजस में पैट्रीशिया स्कॉटलैंड पहले ही अपने दूसरे कार्यकाल के दो वर्ष पूरे कर चुकी हैं। मुश्किल यह है कि इतिहास में कभी किसी महासचिव को दूसरा कार्यकाल लेने से कभी रोका नहीं गया। यदि इस पर मतभेद हुआ भी तो वह सार्वजनिक नहीं हुआ। पर इस बार पैट्रीशिया स्कॉटलैंड अपना दूसरा कार्यकाल पूरा करना चाहती हैं, यह जानते हुए भी ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, न्यूजीलैंड, भारत जैसे बड़े राष्ट्रमंडल देश अपना रुझान नया महासचिव चुनने पर सार्वजनिक कर चुके हैं। अखबारों में भी पैट्रीशिया पर कई तरह के घपलों के आरोप लगते रहे हैं। राष्ट्रमंडल के स्थायी अध्यक्ष ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन और विदेश मंत्री लिज ट्रस खुलकर पैट्रीशिया के दूसरे कार्यकाल को स्वीकृति देने पर विरोध जता चुके हैं। ब्रिटेन व ऑस्ट्रेलिया ने तो वित्तीय सहायता भी निलंबित कर दी थी।
यहां तक कि इसके चलते ब्रिटेन की महारानी और उनकी सरकार में भी दरार नजर आई है। हमेशा से ब्रिटेन का राजपरिवार रोजमर्रा के राजनीति के पचड़ों से दूर रहकर औपचारिकता और संयम के इस्तेमाल से शासन में निरंतरता को बनाए रखने में योगदान करता रहा है। पर हाल ही में राष्ट्रमंडल के कुछ सदस्य देशों के राष्ट्राध्यक्षों के मानवाधिकार हनन को लेकर और खासकर ब्रिटेन की गृह मंत्री प्रीति पटेल के रवांडा से आ रहे शरणार्थियों के प्रति सख्ती से पेश आने से सरकार के कड़े रुख और राजपरिवार की औपचारिकताओं में तनातनी सार्वजनिक हो गई है। इसी बीच, केन्या ने अपने देश की पूर्व रक्षा मंत्री मोनिका जुमा को महासचिव चुने जाने के लिए दावा पेश किया है। मोनिका जुमा को प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन की सरकार के अलावा चीन (जो कि राष्ट्रमंडल का सदस्य भी नहीं है) का समर्थन इस मुद्धे को और भी जटिल बना देता है। इसके अलावा, मेजबान देश रवांडा के राष्ट्रपति पॉल कगामे का दो दशकों से ज्यादा का कार्यकाल भी अक्सर विवादों में रहा है। उनकी सरकार पर बार-बार मनावधिकारों के हनन के आरोप लगते रहे हैं। हालांकि कगामे भी चोगम का इस्तेमाल अपनी सरकार की सफलताएं गिनाने के लिए करना चाहते हैं। रवांडा की 7 प्रतिशत आर्थिक वृद्धि दर, संसद में विश्व में सर्वाधिक 60 प्रतिशत महिलाओं का निर्वाचन और तुत्सी-हुतु साम्प्रदायिक हिंसा पर संयम-सुलह को वह व्यक्तिगत योगदान मनवाना चाहते हैं। तो क्या राजकुमार चार्ल्स, जो महारानी एलिजाबेथ द्वितीय के बढ़ती उम्र के चलते चोगम की अध्यक्षता के लिए आ रहे हैं, राष्ट्रमंडल का प्रतिनिधित्व कर सकेंगे? क्या वह इन हालात का सही विश्लेषण कर पाएंगे?
राष्ट्रमंडल ब्रिटेन के पूर्व-उपनिवेशित राष्ट्रों का एक परिवार जैसा है। बीसवीं सदी की शुरुआत से ही ब्रिटेन ने इन राष्ट्रों को धीमे-धीमे शांतिपूर्ण ढंग से सत्ता हस्तांतरण करके स्वतंत्रता के बाद भी इन्हें अपने साथ जोड़े रखने के लिए 1948 में राष्ट्रमंडल का गठन किया था, जबकि कुछ स्वतंत्र हुए राष्ट्र — जैसे भारत — गणराज्य बन गए जहां राज्य के मुखिया का वे स्वयं चुनाव करते हैं। पर आज भी 15 राष्ट्र अपने को ब्रिटेन का अधिराज्य मानते हैं और महारानी को राज्य का मुखिया। इस बार महारानी एलिजाबेथ द्वितीय के अलावा ऑस्ट्रेलिया के नए प्रधानमंत्री एंथनी ऐल्बनीज भी शामिल नहीं होंगे। उन्होंने एक ‘गणराज्य’ मंत्रालय भी बनाया है और अटकलें हैं कि महारानी के बाद वह ऑस्ट्रेलिया को गणराज्य बनाना चाहते हैं। अन्य राष्ट्रों में भी यह सोच उभर रही है। हालांकि इस बार के चोगम सम्मेलन में मेजबान देश ने 40 से ज्यादा राष्ट्राध्यक्षों के शामिल होने की उम्मीद जताई है पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जी-7 और ब्रिक्स देशों के शिखर सम्मेलनों में व्यस्त होने के कारण किगाली के चोगम में भारत का प्रतिनिधित्व विदेश मंत्री जयशंकर कर रहे हैं। भारत के इस निर्णय को राष्ट्रमंडल व गुटनिरपेक्षता आंदोलन जैसे ऐतिहासिक संगठनों से हटकर विश्व की उभरती हुई ताकतों व अर्थव्यवस्थाओं के नए समीकरणों से जुड़ने की दृष्टि से आंक सकते हैं। इस बार चोगम के समक्ष संगठन की चरमराती अंदरूनी एकजुटता व उभरते हुए नए बहुराष्ट्रीय संगठनों से मिल रही चुनौतियां ही अहम मुद्दा हैं।
राजस्थान पत्रिका, 22 जून 2022
विजिटिंग प्रोफेसर, यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रिटिश कोलम्बिया; फेलो, कनेडियन ग्लोबल अफेयर्स इंस्टीट्यूट और प्रोफेसर, जेएनयू, नई दिल्ली